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08:31, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
दिलों जां हैं रोशन मुन्नवर नज़र है
निजातम के दीदार का ये असर है
नमन कर रहा जिस को हर इक बशर है
निजातम की दहलीज़ का संगेदर है
न मक्का मदीना, न काबा, न काशी
हमारी तो मंज़िल निजातम नगर है
चलूगीं व-हर-तौर मैं इसकी जानिब
मेरी मन्ज़िले हक़ निजातम नगर है
अकीदत से सर को झुकाये चला आ
यही तो निजातम नगर की ड़गर है
चले आओ तुम भी मेरे पीछे पीछे
निजातम के रस्ते की मुझ को ख़बर है
हर इक ज़र्रा-ए-ख़ाक को चूमता जा
निजातम नगर का सुहाना सफ़र है
गुरु जी भी मसन्द नशीं है यहां पर
मुक्द्धस तरीं इसका दीवारो दर है
उसे दिल न कहना कोई संग कहना
निजातम की अज़मत से जो बे- ख़बर है
निजातम का दरबार देखा तो जाना
निजातम नगर वहिशते नज़र है
झूकाती है सर को जहां एक दुनिया
निजातम नगर है निजातम नगर है
</poem>