दिलों जां हैं रोशन मुन्नवर नज़र है / अनु जसरोटिया
दिलों जां हैं रोशन मुन्नवर नज़र है
निजातम के दीदार का ये असर है
नमन कर रहा जिस को हर इक बशर है
निजातम की दहलीज़ का संगेदर है
न मक्का मदीना, न काबा, न काशी
हमारी तो मंज़िल निजातम नगर है
चलूगीं व-हर-तौर मैं इसकी जानिब
मेरी मन्ज़िले हक़ निजातम नगर है
अकीदत से सर को झुकाये चला आ
यही तो निजातम नगर की ड़गर है
चले आओ तुम भी मेरे पीछे पीछे
निजातम के रस्ते की मुझ को ख़बर है
हर इक ज़र्रा-ए-ख़ाक को चूमता जा
निजातम नगर का सुहाना सफ़र है
गुरु जी भी मसन्द नशीं है यहां पर
मुक्द्धस तरीं इसका दीवारो दर है
उसे दिल न कहना कोई संग कहना
निजातम की अज़मत से जो बे- ख़बर है
निजातम का दरबार देखा तो जाना
निजातम नगर वहिशते नज़र है
झूकाती है सर को जहां एक दुनिया
निजातम नगर है निजातम नगर है