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08:41, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
हम भी हसँते-खेलते, हालात कुछ ऐसे न थे
ख़ुश्क आंखों से भला किस रोज़ हम रोये न थे
पहले तो रहते थे मिल-जुल कर कई कुन्बे यहँा
इस मकां के इस क़दर पहले कभी हिस्से न थे
मुँह में रखते थे ज़बां लेकिन रहे ख़ामोश हम
आप की रूसवाईयों के डर से हम बोले न थे
हो गई आंखें मुन्नवर आ के तेरे गाँव में
ऐसे मंज़र मेरी आंखों ने कभी देखे न थे
क्या हुए बचपन के वो गाते हुए शामो-सहर
चहचाहती ज़िन्दगी थी पर कटे किस्से न थे
याद आता है हमें उन सैनिकों का बांकपन
सरहदों पर जा के जो फिर लौट के आये न थे
</poem>