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09:50, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सोचे, तो ख़ुद से शरमाये
किसके है, किसके कहलाये
आंख मे हों आंसू कहलाये
घर छूटे मिटटी हो जाये
कुछ बातों क हुस्न यही है
दिल मे रहे होठों पे न आये
उम्र ही कितनी इन रंगो की
कै से तेरी तस्वीर बनाये
और अभी कुछ धोखे दे लो
जाने कब आंखे खल जाये
</poem>