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{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
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<poem>
सोचे, तो ख़ुद से शरमाये
किसके है, किसके कहलाये

आंख मे हों आंसू कहलाये
घर छूटे मिटटी हो जाये

कुछ बातों क हुस्न यही है
दिल मे रहे होठों पे न आये

उम्र ही कितनी इन रंगो की
कै से तेरी तस्वीर बनाये

और अभी कुछ धोखे दे लो
जाने कब आंखे खल जाये
</poem>
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