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सोचें, तो ख़ुद से शरमायें / वसीम बरेलवी
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सोचे, तो ख़ुद से शरमाये
किसके है, किसके कहलाये
आंख मे हों आंसू कहलाये
घर छूटे मिटटी हो जाये
कुछ बातों क हुस्न यही है
दिल मे रहे होठों पे न आये
उम्र ही कितनी इन रंगो की
कै से तेरी तस्वीर बनाये
और अभी कुछ धोखे दे लो
जाने कब आंखे खल जाये