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{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
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<poem>
अब इन आंखों में कोई कहानी नहीं
कैसे दरिया हुए जिनमें पानी नहीं

खो गई मिल गई वक़्त की गर्द में
वह मुहब्बत जो लगता था फ़ानी नहीं

रेज़ा रेज़ा बिखरना मुक़द्दर हुआ
हार कर भी कभी हार मानी नहीं

सारा किस्सा सफ़र के इरादों का है
रास्तों की तो कोई कहानी नहीं

भागती भीड़ से कोई कह दे 'वसीम'
मेरी आंखों में आंसू हैं, पानी नहीं।


</poem>
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