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22:32, 23 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सईद राही
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|संग्रह=
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<poem>
ये हक़ीक़त है के होता है असर बातों में
तुम भी खुल जाओगे दो-चार मुलक़ातों में
तुम से सदियों की वफ़ाओ का कोई नाता था
तुम से मिलने की लकीरें थीं मेरे हाथों में
तेरे वादों ने हमें घर से निकलने न दिया
लोग मौसम का मज़ा ले गए बरसातों में
अब न सूरज न सितारे न शमा और न चाँद
अपने ज़ख्म़ों का उजाला है घनी रातों में
</poem>