भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये हक़ीक़त है के होता है असर बातों में / सईद राही
Kavita Kosh से
ये हक़ीक़त है के होता है असर बातों में
तुम भी खुल जाओगे दो-चार मुलक़ातों में
तुम से सदियों की वफ़ाओ का कोई नाता था
तुम से मिलने की लकीरें थीं मेरे हाथों में
तेरे वादों ने हमें घर से निकलने न दिया
लोग मौसम का मज़ा ले गए बरसातों में
अब न सूरज न सितारे न शमा और न चाँद
अपने ज़ख्म़ों का उजाला है घनी रातों में