774 bytes added,
22:32, 23 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सईद राही
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पसीने पसीने हुए जा रहे हो
ये बोलो कहाँ से चले आ रहे हो
हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो
ये किसकी बुरी तुम को नज़र लग गई है
बहारों के मौसम में मुर्झा रहे हो
ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो
</poem>