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|रचनाकार=राम नाथ बेख़बर
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<poem>
बड़ी हैरत में हूँ कैसे हमारा ध्यान देती है
लुटाके हर ख़ुशी अक्सर हमें पहचान देती है।

दुखों का बोझ हैं ढ़ोती सदा हँसकर हमारी माँ
गमों में डूब करके भी हमें मुस्कान देती है।

हमें महफूज रखती है बलाएँ लूट करके वो
सदा खुशियाँ जो दे जाएँ वही सामान देती है।

भला कैसे भुला दूँ माँ हर इक अहसान मैं तेरा
तू ही अपने दुलारे पर हमेशा जान देती है।

नहीं है बेख़बर जग में हमारे दर्द से वो तो
हमें वो कंठ देती है हमें वो गान देती है।
</poem>
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