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<poem>
खेत डूबे हुए हैं पानी में
मर रहे लोग अब किसानी में।

मुल्क के काम जो नहीं आती
आग लग जाए उस जवानी में।

गाँव में हर तरफ अँधेरा है
धूप है कैद राजधानी में।

रोज क़िरदार मैंने बदला है
ट्विस्ट आया नहीं कहानी में।

जबकि कुछ भी नहीं यहाँ अपना
जी रहे लोग बदगुमानी में।

ज़ख्म ही ज़ख्म मैंने पाएँ हैं
बेख़बर प्यार की निशानी में।
</poem>
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