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{{KKRachna
|रचनाकार=राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
साध मिटाने दो!
आँसू की तरल तरंगों में आहों के कण बह जाने दो।
उस क्षुब्ध अश्रु की धारा में उच्छ्वास-तरणि लहराने दो॥
ऊषा की रक्तिम आभा से लोचन रंजित हो जाने दो।
अन्तर्वीणा को व्यथा-भरी बस करुण रागिणी गाने दो॥
सुनती पीड़ा में व्यास प्रभो! मुझको पीड़ा अपनाने दो।
निज प्राण-विभव से मुझे देव! निज चरण अलंकृत करने दो॥
पीड़ा से कर के क्षार मुझे अपने ही में मिल जाने दो।
वैसे तुमको पाना दुष्कर ऐसे ही तो फिर पाने दो॥
तुम बनो देव आराध्य मेरे, निर्माल्य मुझे बन जाने दो।
निज चरणों के ढिंग आने दो! मुझको निज साध मिटाने दो॥
</poem>
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साध मिटाने दो!
आँसू की तरल तरंगों में आहों के कण बह जाने दो।
उस क्षुब्ध अश्रु की धारा में उच्छ्वास-तरणि लहराने दो॥
ऊषा की रक्तिम आभा से लोचन रंजित हो जाने दो।
अन्तर्वीणा को व्यथा-भरी बस करुण रागिणी गाने दो॥
सुनती पीड़ा में व्यास प्रभो! मुझको पीड़ा अपनाने दो।
निज प्राण-विभव से मुझे देव! निज चरण अलंकृत करने दो॥
पीड़ा से कर के क्षार मुझे अपने ही में मिल जाने दो।
वैसे तुमको पाना दुष्कर ऐसे ही तो फिर पाने दो॥
तुम बनो देव आराध्य मेरे, निर्माल्य मुझे बन जाने दो।
निज चरणों के ढिंग आने दो! मुझको निज साध मिटाने दो॥
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