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नमन् देश के प्रहरी को ।
जंगल - झाड़ी, नदियों - नालों
खाई - खंदक , घाटी - ढालों
कंटक - कुश , पाँवों के छालों
से न तनिक जो विचलित होते
जिनको देश प्राण से प्यारा ।
नमन् देश के प्रहरी को ।।

शीतलहर मानो है जूती
मृत्यु - कहर मानो है लूती
व्यथा-वेदना तनिक न छूती
जो भय से न विचलित होते
जिनमें देश प्रेम की धारा ।
नमन् देश के प्रहरी को ।।

रात - दिवस जो देते पहरा
कण - कण से नाता है गहरा
दुश्मन जिन्हें देखकर थहरा
जो आँधी को आँख दिखाते
जिनका कीर्तिमान है न्यारा ।
नमन् देश के प्रहरी को ।।

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