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{{KKRachna
|रचनाकार=कपिल भारद्वाज
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|संग्रह=सन्दीप कौशिक
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<poem>
ओ लेखनी मेरे साथ चल, गांव-गांव डगर-डगर ।

उन भोले सजल नयनों की, गाथा लिखदे.
दुर्भाग्य से टूटे सपनों की, व्यथा लिखदे.
ढाह दे कल्पनाओं का महल, छोड़दे कातर स्वर ।

झोपड़ी में बैठी, कंटीली शाख लिखदे,
चूल्हे में बिखरी, पुरानी राख लिखदे,
चीखते सन्नाटों से सम्भल, वरना ठहर जाऐगा सफर ।

फूलों की नाज़ुकी, या भूख का रंग लिखदे,
रातों की तड़पन, या टूटते अंग लिखदे,
कविता लिख या लिख गजल, जागूंगा रात भर ।

रोते किसान के, आंसुओं की पीर लिखदे,
मजदूर के माथे की, मिटी लकीर लिखदे,
छोड़दे पाखण्ड व छल, रहने दे अगर-मगर ।
</poem>
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