भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ लेखनी मेरे साथ चल, गांव-गांव डगर-डगर / कपिल भारद्वाज
Kavita Kosh से
ओ लेखनी मेरे साथ चल, गांव-गांव डगर-डगर ।
उन भोले सजल नयनों की, गाथा लिखदे.
दुर्भाग्य से टूटे सपनों की, व्यथा लिखदे.
ढाह दे कल्पनाओं का महल, छोड़दे कातर स्वर ।
झोपड़ी में बैठी, कंटीली शाख लिखदे,
चूल्हे में बिखरी, पुरानी राख लिखदे,
चीखते सन्नाटों से सम्भल, वरना ठहर जाऐगा सफर ।
फूलों की नाज़ुकी, या भूख का रंग लिखदे,
रातों की तड़पन, या टूटते अंग लिखदे,
कविता लिख या लिख गजल, जागूंगा रात भर ।
रोते किसान के, आंसुओं की पीर लिखदे,
मजदूर के माथे की, मिटी लकीर लिखदे,
छोड़दे पाखण्ड व छल, रहने दे अगर-मगर ।