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{{KKRachna
|रचनाकार=कपिल भारद्वाज
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
{{KKCatHaryanaviRachna}}
<poem>
क्या हुआ वो 70 साल की वृद्धा है,
या साल भर की बच्ची,
वह गर्भवती है या बीमार,
नोकरी-पेशा है या घरेलू,
शिष्टता से ढंके इस बलात्कारी समाज मे,
पशुत्व के विशेषण से सुशोभित समय में ।
कहकहों और रोदन के बीच,
सुबकती मानवता के परले सिरे पर,
एक प्रेमी प्रेमिका अपनी होने वाली बच्ची के नाम पर जिरहबाजी करें,
नहीं रेहाना नहीं मनीषा ठीक रहेगा,
ना-ना मैं तो रेहाना ही रखूंगा,
तो ऐसा लगता है,
मानो कोढ़ लगी इंसानियत के शरीर के कुलबुलाते अंग को,
लेप दिया गया है भीनी खुशबू की औषधियों से ।
</poem>
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|रचनाकार=कपिल भारद्वाज
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
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क्या हुआ वो 70 साल की वृद्धा है,
या साल भर की बच्ची,
वह गर्भवती है या बीमार,
नोकरी-पेशा है या घरेलू,
शिष्टता से ढंके इस बलात्कारी समाज मे,
पशुत्व के विशेषण से सुशोभित समय में ।
कहकहों और रोदन के बीच,
सुबकती मानवता के परले सिरे पर,
एक प्रेमी प्रेमिका अपनी होने वाली बच्ची के नाम पर जिरहबाजी करें,
नहीं रेहाना नहीं मनीषा ठीक रहेगा,
ना-ना मैं तो रेहाना ही रखूंगा,
तो ऐसा लगता है,
मानो कोढ़ लगी इंसानियत के शरीर के कुलबुलाते अंग को,
लेप दिया गया है भीनी खुशबू की औषधियों से ।
</poem>