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Kavita Kosh से
ढूँढता कुछ पहर हूँ।
मैं शहर हूँ।
बेमुरव्वत भीड़ में,
परछाइयों की निगहबानी,
मन-मन में ही घुला जहर हूँ।
मैं शहर हूँ।
मन के नाजुक से मौसम में,
भारी-भरकम बोझ उठाए,