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मैं शहर हूँ / निशान्त जैन

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ढूँढता कुछ पहर हूँ।
मैं शहर हूँ।
 
बेमुरव्वत भीड़ में,
परछाइयों की निगहबानी,
मन-मन में ही घुला जहर हूँ।
मैं शहर हूँ।
 
मन के नाजुक से मौसम में,
भारी-भरकम बोझ उठाए,
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