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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
सुबह
सूरज आने का वक़्त
ठण्डी हवा बहती है न!

हरी घास
हम दो और हमारी गर्म साँस
विवस्त्र, हाँ विवस्त्र

इसके पहले कि
बिक जाएँ हमारे शरीर
विवस्त्र हम पास-पास
हलकी ठण्ड में
जमाने को ठेंगा दिखाकर
डंकल को, मेमन भाइयों और सैम अंकल को
हर मुहल्ले दंगाइयों के जंगल को

सबको जीभ चिढ़ाकर
ताप में बँधे
विवस्त्र, हाँ विवस्त्र
ओह!

</poem>
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