भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इसके पहले कि / खीर / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह
सूरज आने का वक़्त
ठण्डी हवा बहती है न!

हरी घास
हम दो और हमारी गर्म साँस
विवस्त्र, हाँ विवस्त्र

इसके पहले कि
बिक जाएँ हमारे शरीर
विवस्त्र हम पास-पास
हलकी ठण्ड में
जमाने को ठेंगा दिखाकर
डंकल को, मेमन भाइयों और सैम अंकल को
हर मुहल्ले दंगाइयों के जंगल को

सबको जीभ चिढ़ाकर
ताप में बँधे
विवस्त्र, हाँ विवस्त्र
ओह!