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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
जान अपनी दे कर भी ज़िंदगी कमा लाया
पत्थरों की बारिश से आईना बचा लाया

एक-इक ख़ुशी दे दी संग दिल ज़माने को
बच रहे थे ग़म उनको मेरा दिल उठा लाया

ज़िंदगी ने हँस-हँस के देखा ये तमाशा भी
लोग आँधियाँ लाए और मैं दिया लाया

आ गया था थाली में स्नेह सारी दुनिया
मेरा भाई जब खाना माँ के हाथ का लाया

ज़िन्दगी के मेले में मन भटक गया `हस्ती'
क्या हमें दिखाना था क्या हमें दिखा लाया
</poem>