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01:38, 26 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
}}
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<poem>
राजा को समझाने निकला
अपनी जान गँवाने निकला
सारी बस्ती राख हुई तब
बादल आग बुझाने निकला
यार! यहाँ तो सब अंधे हैं
किसको ज़ख़्म दिखाने निकला
सारे जग में जिसको ढूँढ़ा
वो मेरे सिरहाने निकला
कह दो ज़ालिम आंधी से तुम
'हस्ती' दीप जलाने निकला
</poem>