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<poem>
हम नदी के दो किनारे
चाह कर भी मिल न पाए

मधु-मिलन के मंत्र पावन
रात-दिन हमने पढ़े थे
बंधनो की आस बाँधे
भुज प्रतीक्षारत खड़े थे
किंतु पग जड़ पर्वतों सम
लेश भर भी हिल न पाए
हम नदी के दो किनारे
चाह कर भी मिल न पाए... (1)

जब कभी तुमको भुलाया
तीव्र-गति से याद आई
दर्द की दारुण कहानी
झूम कर हमने सुनाई
इस जहाँ के मन मुताबिक़
होंठ अपने सिल न पाए
हम नदी के दो किनारे
चाह कर भी मिल न पाए... (2)

दोष इतना था हमारा
देखते थे मिलन सपना
इस मिलन की चाह ने पर
खो दिया हर एक अपना
आँख उपवन में कभी भी
फ़ूल सुंदर खिल न पाए
हम नदी के दो किनारे
चाह कर भी मिल न पाए... (3)
</poem>
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