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<poem>
शब्द से सत्य को मैं छलूँगा नहीं।
तालियों के चषक में ढलूँगा नहीं।

प्रीति की जाह्नवी क्या मिलेगी तुम्हें,
मैं हिमालय कभी जो गलूँगा नहीं।

पास है पर मिलेगी न मंज़िल कभी,
राह पर दो क़दम जो चलूँगा नहीं।

पल-चषक, आ तुझे क्यों न पी लूँ अभी,
बाद में हाथ यों ही मलूँगा नहीं।

ओ शमा, मैं पतंगा नहीं, छंद हूँ,
ख्याति की आग में मैं जलूँगा नहीं।

आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा
</poem>
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