1,155 bytes added,
07:22, 27 फ़रवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम नीरव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeetika}}
<poem>
शब्द से सत्य को मैं छलूँगा नहीं।
तालियों के चषक में ढलूँगा नहीं।
प्रीति की जाह्नवी क्या मिलेगी तुम्हें,
मैं हिमालय कभी जो गलूँगा नहीं।
पास है पर मिलेगी न मंज़िल कभी,
राह पर दो क़दम जो चलूँगा नहीं।
पल-चषक, आ तुझे क्यों न पी लूँ अभी,
बाद में हाथ यों ही मलूँगा नहीं।
ओ शमा, मैं पतंगा नहीं, छंद हूँ,
ख्याति की आग में मैं जलूँगा नहीं।
आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा
</poem>