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04:52, 18 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जिंदगी दर्द का समंदर है
एक दुनियाँ-सी इसके अंदर है
गहरे उतरे तो जान पाओगे
है कहाँ गिरि औ कहाँ कन्दर है
जिसने औरों की गर्दनें काटीं
बस वही आज का सिकन्दर है
जिसको पलकों पर सुलाये रक्खा
यूँ तो सपना है मगर सुंदर है
झील हूँ मैं तो एक उल्फ़त की
वो मगर रेत का बवंडर है
</poem>