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ज़िन्दगी दर्द का समंदर है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जिंदगी दर्द का समंदर है
एक दुनियाँ-सी इसके अंदर है
गहरे उतरे तो जान पाओगे
है कहाँ गिरि औ कहाँ कन्दर है
जिसने औरों की गर्दनें काटीं
बस वही आज का सिकन्दर है
जिसको पलकों पर सुलाये रक्खा
यूँ तो सपना है मगर सुंदर है
झील हूँ मैं तो एक उल्फ़त की
वो मगर रेत का बवंडर है