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प्रतीक्षा बहुत की इधर आइये कभी तो प्रगति की लहर लाइये हुए दिग्भ्रमित आज आदर्श हैं अँधेरा बहुत ह
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|रचनाकार=रंजना वर्मा
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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
पीर-धूल संघर्षण देना
प्राणों का नित अर्पण देना

अलग न कोई करने पाये
ऐसा मुग्ध समर्पण देना

जीवन में उत्साह जगाते
स्वप्नों का संकर्षण देना

मुग्ध रहूँ स्तब्ध न होऊँ
वह अद्भुत आकर्षण देना

अपना अक्स देख मैं पाऊँ
मुझ को ऐसा दर्पण देना

</poem>