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प्रतीक्षा बहुत की इधर आइये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
पीर-धूल संघर्षण देना
प्राणों का नित अर्पण देना
अलग न कोई करने पाये
ऐसा मुग्ध समर्पण देना
जीवन में उत्साह जगाते
स्वप्नों का संकर्षण देना
मुग्ध रहूँ स्तब्ध न होऊँ
वह अद्भुत आकर्षण देना
अपना अक्स देख मैं पाऊँ
मुझ को ऐसा दर्पण देना