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Kavita Kosh से
बेकार है फ़ितूर दिले-बेक़रार में
कुछ भी नहीं रखा है मुए प्यार-व्यार में
क्या रह गया है इश्क़ में, चाहत में, प्यार में
बेकार सी कशिश है दि ले बे-क़रार में
बदलेगा वक़्त आएंगी ख़ुद मंज़िलें क़रीब
यह सोचकर खड़े हैं कई इंतेज़ार में
दिन का सुकूनो-चैन गया नींद रात की सुकून हो कि हो रातों का वो क़रार
"कुछ भी नहीं रहा है मेरे इख़्तियार में"
देखो बिछड़ के तुमसे ये फूलों का हार भी उसकी सभी रौनकें गयीं कांटों सा चुभ रहा तन्हा ही रह गया है दिले बेक़रार वो उजड़े दयार में
अब पूछने लगी है सुब्हये हमसे उमीदे-ए-नौ से रात गए सफ़ में ज़िंदगी दिल
ताउम्र क्या खड़े ही रहेंगे क़तार में
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