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भालू / एस. मनोज

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कुहू कुहू कय रहल कोयलियादेखें देखें देखें भालूसजल धजल घरती केर रूपबाध बोन सभ गमैक रहल उछल कूद अछिगुनगुन गुनगुन लागै धूपकयने चालू
दिग दिगन्त घरि फूल खिलल अछिप्रकृतिक सुषमा अपरंपारऋतु वसंत मे प्रकृति रानी करिया भालू गड़ामे पट्टाकय लैत देखहीं लागैत अछि सोलहो शृंगारअलबत्ता
मंद मंद चलि रहल पवन सँमॉथ पर टोपी देहमे अंगाडोलि रहल नाचैत अछि गाछक पातअलसायल अलमस्त जीव आचहुँ दिस निखरै नवल प्रभातसौंसे दरिभंगा
धरा धाम सुरभित भ जाय आडमरू जखनहि बाजैत अछिसभहक भेंटै पुनि पुनि प्राणतखनहि नाच देखाबैत अछिजीव जगत मुस्काबै सदिखनप्रीत सुमेलित सकल जहाँनघूमि घूमि के नाच देखाबयनाच देखाके पाय कमाबय
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