780 bytes added,
06:04, 7 मई 2019
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ओह घरी
असत् ना रहे
सतो ना रहे
तीनों लोको ना रहे
अंतरिक्षो ना रहे
आउर ओकरा पारो
कुछो ना रहे
ताह घरी
सबके ढके वला
आप: तत्व
जलो
कहां रहे ॥1॥
नासदासीन्नो सदासात्तदानीं नासीद्रजो नोव्योमा परोयत्।
किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम् ॥1॥
</poem>