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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
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<poem>
क्या हसीं घर का नज़ारा हो गया
घर मेरा जब से तुम्हारा हो गया।

हम तरसते थे सदा जिसके लिए
वो हमेशा को हमारा हो गया।

इश्क़ के दरिया में उतरी थी ज़रूर
पर भँवर में दिल बेचारा हो गया।

प्यार तेरा ज़िन्दगी की राह में
मुझ भटकते का सहारा हो गया।

प्यार का मौजों में हम ऐसे बहे
दूर दुनिया का किनारा हो गया।

सबसे बढ़कर प्यार था प्यारा हमें
प्यार में भी यार प्यारा हो गया।
</poem>
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