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|रचनाकार=तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
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<poem>
आओ! हम-तुम दोनों मिलकर,
आसमान के तारे तोड़ें।

अपनी श्रम-श्रद्धा के दम पर,
एक नया सोपान बनाएँ।
सोच-समझ कर, देखभाल कर,
फिर धीमे से कदम बढ़ाएँ।
आने वाली हर बाधा का,
अपनी मेहनत से रुख मोड़ें।
आओ हम-तुम...

मन में जोश नया भरकर हम,
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ जाएँ।
उम्मीदों का दीप जलाकर,
राहों का अँधियार मिटाएँ।
वक़्त सुलाकर भूला जिनको,
उन सपनों को आज झिंझोड़े।
आओ! हम-तुम ...

ज्यों नदियाँ ख़ुद पथ तय करती,
हम भी अपनी राह बनाएँ।
ऊँचे नभ में पंख पसारे,
पंछी ज्यों उड़कर हर्षाएँ।
अपनी किस्मत की शाखों पर,
मेहनत के कुछ पत्ते जोड़ें।
आओ! हम-तुम...
</poem>
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