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|रचनाकार=सुनीता पाण्डेय 'सुरभि'
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<poem>
हमारा वतन ये हमारा वतन।
हमें जान से भी है प्यारा वतन॥

है गंगा व यमुना की धारा यहाँ,
है रमणीय परिदृश्य सारा यहाँ।
ये है स्वर्ग-सम जग से न्यारा वतन-
हमें जान से भी है प्यारा वतन॥

ये सोंधी—सी मिट्टी, ये नीला गगन,
है संगीत-लहरी सुनाता पवन।
धरा का चमकता सितारा वतन-
हमें जान से भी है प्यारा वतन॥

कई सभ्यताओं का उद्गम है ये,
नये और पुराने का संगम है ये।
विधाता ने ऐसा निखारा वतन-
हमें जान से भी है प्यारा वतन॥

धरती है माँ, है पिता सम गगन,
ये सुवासित पवन, मुस्कुराते ये वन।
है सबका, हमारा-तुम्हारा वतन-
हमें जान से भी है प्यारा वतन॥
</poem>
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