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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
इश्क़ होता तो मर गया होता
क्या कहूँ क्या न कर गया होता।

साथ हर वक़्त मेरा साया था
वरना दुनिया से डर गया होता।

इक इशारा तुम्हारा काफी था
मैं हदों से गुज़र गया होता।

चीख़ते रहते हैं दरो-दीवार
तू कभी मेरे घर गया होता।

अश्क़ टपके नहीं तिरे वरना
ज़ख़्म मेरा ये भर गया होता।

तू न मिलता तो क्या ये सोचा है
मैं कहां तू किधर क्या होता।

मैं बुरा हूँ ये तुम जो कह देते
माँ क़सम मैं सँवर गया होता।

</poem>
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