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इश्क़ होता तो मर गया होता / कुमार नयन
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इश्क़ होता तो मर गया होता
क्या कहूँ क्या न कर गया होता।
साथ हर वक़्त मेरा साया था
वरना दुनिया से डर गया होता।
इक इशारा तुम्हारा काफी था
मैं हदों से गुज़र गया होता।
चीख़ते रहते हैं दरो-दीवार
तू कभी मेरे घर गया होता।
अश्क़ टपके नहीं तिरे वरना
ज़ख़्म मेरा ये भर गया होता।
तू न मिलता तो क्या ये सोचा है
मैं कहां तू किधर क्या होता।
मैं बुरा हूँ ये तुम जो कह देते
माँ क़सम मैं सँवर गया होता।