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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>कर लो दिल को गवाह फिर कहना
ख़ुद को तुम बे गुनाह फिर कहना

मेरे बारे में जो भी कहना है
मुझ से कर ले निबाह फिर कहना

कुछ फक़ीरों से गुफ़्तगू कर ले
ख़ुद को तू बादशाह फिर कहना

दोस्ती इम्तिहान में रख दे
कौन है ख़ेर ख़्वाह फिर कहना

शेर कहना है ठीक है लेकिन
कर ले दिल को तबाह फिर कहना
</poem>