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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>कुछ तो चेहरे भी हैं मलूल अलग
आईनों पर जमी है धूल अलग

आज एहसास हो रहा होगा
कर के बैठे हैं आप भूल अलग

रोज़ करता हूँ ख़ुद से समझोता
रोज़ रखता हूँ कुछ उसूल अलग

अपनी पहचान रख के बशाहर आओ
दिल की बस्ती के हैं उसूल अलग

अगली नस्लें चलेंगी फूलों पर
कीजिए राह से बबूल अलग
</poem>