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|रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
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<poem>
मछली जल में प्यासी है।
क्या यह बात जरा सी है?

जिस बन्दे के रीढ़ नहीं,
कीमत अच्छी-खासी है।।

भूख परखती कब रोटी,
ताजी है या बासी है।।

अब तक रहा प्रतीक्षा में,
पर अब सख्त उदासी है।।

जीत लिया जिसने खुद को,
‘मृदुल’ वही संन्यासी है।।
</poem>
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