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|रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
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<poem>
बादलों का ज़ोर है, बरसात है।
नाचता मन मोर है, बरसात है।।

झींगुरी आवाज पर चर्चा हुई,
क्रान्ति का यह शोर है, बरसात है।।

हम यहाँ जलते-तड़पते, वे वहाँ,
नेह की यह डोर है, बरसात है।।

घुप अँधेरा हर तरफ फैला हुआ,
डर रहा मन, चोर है, बरसात है।।

बिजलियाँ किस पर गिरेंगी क्या पता
खौफ़ अब हर ओर है, बरसात है।।
</poem>
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