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08:13, 8 जुलाई 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कृष्ण 'कुमार' प्रजापति
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
खुलके हँसना-मुस्कुराना आ गया
हमको भी अब ग़म छिपाना आ गया
दोस्त भी दुश्मन नज़र आने लगे
जाने कैसा ये ज़माना आ गया
जब चमन में टूट कर बिजली गिरी
जद में अपना आशियाना आ गया
चोट सह लेने की हिम्मत आ गयी
दर्द में भी गुनगुनाना आ गया
आँधियों से कह दो मैं डरता नहीं
अब मुझे भी घर बनाना आ गया
इक जवानी आप पर क्या आ गयी
हर किसी से दिल लगाना आ गया
ये तो उसकी मेहरबानी है “कुमार”
शेर कहना, गीत गाना आ गया
</poem>