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|रचनाकार=कृष्ण 'कुमार' प्रजापति
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<poem>
खुलके हँसना-मुस्कुराना आ गया
हमको भी अब ग़म छिपाना आ गया

दोस्त भी दुश्मन नज़र आने लगे
जाने कैसा ये ज़माना आ गया

जब चमन में टूट कर बिजली गिरी
जद में अपना आशियाना आ गया

चोट सह लेने की हिम्मत आ गयी
दर्द में भी गुनगुनाना आ गया

आँधियों से कह दो मैं डरता नहीं
अब मुझे भी घर बनाना आ गया

इक जवानी आप पर क्या आ गयी
हर किसी से दिल लगाना आ गया

ये तो उसकी मेहरबानी है “कुमार”
शेर कहना, गीत गाना आ गया
</poem>
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