भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुलके हँसना - मुस्कुराना आ गया / कृष्ण 'कुमार' प्रजापति
Kavita Kosh से
खुलके हँसना-मुस्कुराना आ गया
हमको भी अब ग़म छिपाना आ गया
दोस्त भी दुश्मन नज़र आने लगे
जाने कैसा ये ज़माना आ गया
जब चमन में टूट कर बिजली गिरी
जद में अपना आशियाना आ गया
चोट सह लेने की हिम्मत आ गयी
दर्द में भी गुनगुनाना आ गया
आँधियों से कह दो मैं डरता नहीं
अब मुझे भी घर बनाना आ गया
इक जवानी आप पर क्या आ गयी
हर किसी से दिल लगाना आ गया
ये तो उसकी मेहरबानी है “कुमार”
शेर कहना, गीत गाना आ गया