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|रचनाकार=कृष्ण 'कुमार' प्रजापति
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<poem>
बहुत हो चुकी है सियासत की बातें
करो अब हमारी जरूरत की बातें

मुलाक़ात होती तो है दुश्मनों से
वो करते नहीं हैं मुहब्बत की बातें

निपट लो अगर बाज़ुओं में है ताक़त
करो मुझसे मत ये अदालत की बातें

जो तुमने किया है वो सब भूल बैठे
करें क्यूँ किसी से शिकायत की बातें

समाजी मिलाते हैं दिल को दिलों से
सियासी हैं करते अदावत की बातें

नमाज़ी सिखायें चलन भक्तियों का
पुजारी करें जो इबादत की बातें

“कुमार “ उसको मत अक़्लवाला समझिये
जो करता है मिल के हिमाक़त की बातें
</poem>
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