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<poem>
नेह की
नजरों से मुझको
ऐसे देखा आपने।
मन-पखेरु उड़ चला फिर
आसमां को नापने।

कामना का बाँध टूटा-
ग्रंथियां भी
खुल गईं।
मलिनता सारी हृदय की
आँसुओं से
धुल गई।
एक नई भाषा
बना ली,
तन के शीतल ताप ने।

शब्द को मिलती गईं
नव-अर्थ की
ऊँचाइयाँ।
भाव पुष्पित हो गए
मिटने लगीं
तनहाइयाँ।
गीत में स्वर
भर दिए हैं-
प्यार के आलाप ने-
मन पखेरु उड़ चला फिर,
आसमां को नापने॥
</poem>
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