भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन पखेरु उड़ चला फिर / सुनीता शानू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नेह की
 नजरों से मुझको
 ऐसे देखा आपने।
मन-पखेरु उड़ चला फिर
 आसमां को नापने।

कामना का बाँध टूटा-
 ग्रंथियां भी
 खुल गईं।
मलिनता सारी हृदय की
 आँसुओं से
 धुल गई।
एक नई भाषा
 बना ली,
तन के शीतल ताप ने।

शब्द को मिलती गईं
 नव-अर्थ की
 ऊँचाइयाँ।
भाव पुष्पित हो गए
 मिटने लगीं
 तनहाइयाँ।
गीत में स्वर
 भर दिए हैं-
प्यार के आलाप ने-
 मन पखेरु उड़ चला फिर,
 आसमां को नापने॥