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<poem>
कहीं सुनी तो होगी
कहकहों के शोर में किसी के
सिसकने की आवाज
तेज हँसी के बीच किसी की
खामोश मुस्कुराहट

कहीं दूर जब
कोई सितारा टूटता होगा
मचलती होंगी
सैंकड़ों ख्वाहिशे
क्या किसी अजन्मे की चीख
घुट गई होगी
गर्भ में ही
या फिर
सियारों के शोर और कूड़े के ढेर में
दब कर रह गया होगा
क्रंदन
किसी नाजायाज या नामुराद का

कब सोचा होगा कभी
बहलाते, फ़ुसलाते हैवानियत के हाथ
रौंद देंगे किसी
मासूम का बचपन
या किसी गुनहगार की
बुलंद आवाज़ के नीचे
दब गई होगी
किसी बेगुनाह की बेगुनाही

कहीं सुना तो होगा
तोड़ ली गई
फिर कली कोई
फूल बनने से पहले
छूट गया बचपन
निखरने से पहले

कहीं सुनी तो होगी खबर
दुनियां बदलने की...।
</poem>
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