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खबर दुनिया बदलने की / सुनीता शानू
Kavita Kosh से
कहीं सुनी तो होगी
कहकहों के शोर में किसी के
सिसकने की आवाज
तेज हँसी के बीच किसी की
खामोश मुस्कुराहट
कहीं दूर जब
कोई सितारा टूटता होगा
मचलती होंगी
सैंकड़ों ख्वाहिशे
क्या किसी अजन्मे की चीख
घुट गई होगी
गर्भ में ही
या फिर
सियारों के शोर और कूड़े के ढेर में
दब कर रह गया होगा
क्रंदन
किसी नाजायाज या नामुराद का
कब सोचा होगा कभी
बहलाते, फ़ुसलाते हैवानियत के हाथ
रौंद देंगे किसी
मासूम का बचपन
या किसी गुनहगार की
बुलंद आवाज़ के नीचे
दब गई होगी
किसी बेगुनाह की बेगुनाही
कहीं सुना तो होगा
तोड़ ली गई
फिर कली कोई
फूल बनने से पहले
छूट गया बचपन
निखरने से पहले
कहीं सुनी तो होगी खबर
दुनियां बदलने की...।