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08:55, 7 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन रांगियाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पहले कुछ नहीं था
न बोलना
और न ही चुप रहना
फिर धीरे धीरे
दुनिया में व्याकरण आया
और फिर पूरी दुनिया की भाषा
ख़राब हो गई
हम फिर लौटेंगे
उसी आरंभ की तरफ
जिसे दुनिया अंत कहेगी
तब न कुछ कहा जाएगा
और न ही सुना जाएगा कुछ
वही अ-व्याकरण वाली शुरुआत
जिसे लोग अंत कहेंगे
एक सुंदर कविता होगी
</poem>