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09:21, 8 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्यता और जीवन
}}
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<poem>
जन चार
भार (मृत मवेशी) लिए कंधों पर जा रहे
हिम्मत सबकी
हो रही तार-तार
मृत्यु का बोझ
हो रहा भार है
त्याग दें भार तो
जीना दुश्वार है।
</poem>