507 bytes added,
09:27, 8 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्यता और जीवन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
नंगे होते हो
तो ढंपते हो
इतिहास के पृष्ठों में
कि इतिहास नंगा है
मार-काट लूट-पाट
नया नहीं
इतिहास में ही
सारा फसाद-दंगा है।
</poem>