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संधान / महेन्द्र भटनागर

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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह=जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर
}}::इस बीच: <br>
::जीये किस तरह —<br>
::हम ही जानते हैं !<br>
::हम ही जानते हैं !<br><br>
::अर्थ: <br>::जीवन का: जगत् का<br>
::गूढ़ था जो आज तक<br>
::अब हम<br>
::पहचानते हैं !<br><br>
::आओ,<br> तुम्हें —<br>
::हाँफ़ते,<br>
::दम तोड़ते<br>